हमेशा खुश रहने का तरीका है माइंडफुलनेस, जानें इस थेरपी के बारे में
हमेशा खुश रहने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है और वह है माइंडफुलनेस। अब आप सोच रहे होंगे कि भला यह क्या है और कैसे होता है? दरअसल माइंडफुलनेस ऐसी थेरपी है, जिसके जरिए हम अपने अंदर, अपने आसपास हो रहीं घटनाओं या स्थितियों के प्रति जागरुकता पैदा करते हैं। यह एक तरह से ध्यान ही है। बस फर्क यह है कि ध्यान लगाने के लिए एक तय वक्त पर अलग-से कोशिश करने के बजाय माइंडफुलनेस में हमें जिस लम्हा, जहां होते हैं, अपना पूरा ध्यान वहीं लगाना होता है और उस लम्हे को पूरी तरह महसूस करना और जीना होता है।
इससे बढ़ती है खुशी
माना जाता है कि माइंडफुलनेस तकनीक की रेग्युलर प्रैक्टिस करने से हम खुश रहना सीख जाते हैं। दरअसल, इसके जरिए हम मौजूद लम्हे से जुड़ जाते हैं और उसे स्वीकार कर लेते हैं। इससे यह डर खत्म हो जाता है कि इस लम्हे ऐसा होता तो क्या होता? या फिर हम ऐसा चाहते थे, वैसा नहीं हुआ आदि। जब हम सचाई को स्वीकार कर लेते हैं तो खराब स्थितियां भी हमें परेशान नहीं करतीं। हम मान लेते हैं कि हम इस स्थिति को बदल नहीं सकते। हां, अपने रिऐक्शन या प्रतिक्रिया को जरूर बदल सकते हैं। इससे धीरे-धीरे हम हर स्थिति को स्वीकार करना और उसमें खुश रहना सीख जाते हैं।
माना जाता है कि माइंडफुलनेस तकनीक की रेग्युलर प्रैक्टिस करने से हम खुश रहना सीख जाते हैं। दरअसल, इसके जरिए हम मौजूद लम्हे से जुड़ जाते हैं और उसे स्वीकार कर लेते हैं। इससे यह डर खत्म हो जाता है कि इस लम्हे ऐसा होता तो क्या होता? या फिर हम ऐसा चाहते थे, वैसा नहीं हुआ आदि। जब हम सचाई को स्वीकार कर लेते हैं तो खराब स्थितियां भी हमें परेशान नहीं करतीं। हम मान लेते हैं कि हम इस स्थिति को बदल नहीं सकते। हां, अपने रिऐक्शन या प्रतिक्रिया को जरूर बदल सकते हैं। इससे धीरे-धीरे हम हर स्थिति को स्वीकार करना और उसमें खुश रहना सीख जाते हैं।
माइंडफुलनेस के तरीके
1. सांस पर ध्यान देना (Mindful Breathing)
2. ध्यान देकर सुनना (Mindful Listening)
3. ध्यान देकर देखना (Mindful Seeing)
4. विचारों पर ध्यान देना (Mindful Drawing)
5. शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना (Mindful Body Stretching)
2. ध्यान देकर सुनना (Mindful Listening)
3. ध्यान देकर देखना (Mindful Seeing)
4. विचारों पर ध्यान देना (Mindful Drawing)
5. शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना (Mindful Body Stretching)
माइंडफुलनेस के फायदे
1. तनाव से मुक्ति
2. याद करने के शक्ति में इजाफा
3. एकाग्रता का बढ़ना
4. भावनात्मक स्टैबिलिटी होना
5. शांति और खुशी का अहसास बढ़ना
6. हाइपर-ऐक्टिविटी कम होना
7. गुस्सा कम आना
8. एक-दूसरे को समझने की क्षमता बढ़ना
9. फैसले लेने की क्षमता में इजाफा
10. नींद का बेहतर होना
1. तनाव से मुक्ति
2. याद करने के शक्ति में इजाफा
3. एकाग्रता का बढ़ना
4. भावनात्मक स्टैबिलिटी होना
5. शांति और खुशी का अहसास बढ़ना
6. हाइपर-ऐक्टिविटी कम होना
7. गुस्सा कम आना
8. एक-दूसरे को समझने की क्षमता बढ़ना
9. फैसले लेने की क्षमता में इजाफा
10. नींद का बेहतर होना
कैसे करें
माइंडफुलनेस थेरपी को करना बहुत आसान है। आप जिस वक्त जहां हैं, पूरी तरह वहीं ध्यान लगाना होता है। इसके लिए कमर सीधी रखकर कुर्सी पर बैठें या फिर चौकड़ी मारकर जमीन पर बैठें:
माइंडफुलनेस थेरपी को करना बहुत आसान है। आप जिस वक्त जहां हैं, पूरी तरह वहीं ध्यान लगाना होता है। इसके लिए कमर सीधी रखकर कुर्सी पर बैठें या फिर चौकड़ी मारकर जमीन पर बैठें:
1. सांस पर ध्यान देना (कम-से-कम 10 मिनट)
अपना ध्यान सांस पर लगाएं। अपने अंदर जाती और बाहर आती सांस को सहज रूप से महसूस करें। सांस के उतार-चढ़ाव को महसूस करें। एक हाथ पेट पर रखें और गौर करें कि जब सांस लें तो पेट बाहर की तरफ जाए और जब सांस छोड़ें तो पेट अंदर की तरफ जाए। यह भी गौर कर सकते कि सांस ठंडी है या गर्म।जब भी ध्यान सांस से हटकर इधर-इधर जाए, घबराएं नहीं। ऐसा सबके साथ होता है। हमारा मन बहुत चंचल है और एक जगह पर स्थिर नहीं रहता। लेकिन भटकाव के बाद फिर से अपने मन को सांस पर केंद्रित करें। आप सांस के प्रति सजग रहें और जब भी मन भटके, उसे लौटाकर फिर से सांस पर लेकर आएं। ऐसा करते हुए सांस सामान्य तरीके से ही लें। सांस गहरी न लें।
अपना ध्यान सांस पर लगाएं। अपने अंदर जाती और बाहर आती सांस को सहज रूप से महसूस करें। सांस के उतार-चढ़ाव को महसूस करें। एक हाथ पेट पर रखें और गौर करें कि जब सांस लें तो पेट बाहर की तरफ जाए और जब सांस छोड़ें तो पेट अंदर की तरफ जाए। यह भी गौर कर सकते कि सांस ठंडी है या गर्म।जब भी ध्यान सांस से हटकर इधर-इधर जाए, घबराएं नहीं। ऐसा सबके साथ होता है। हमारा मन बहुत चंचल है और एक जगह पर स्थिर नहीं रहता। लेकिन भटकाव के बाद फिर से अपने मन को सांस पर केंद्रित करें। आप सांस के प्रति सजग रहें और जब भी मन भटके, उसे लौटाकर फिर से सांस पर लेकर आएं। ऐसा करते हुए सांस सामान्य तरीके से ही लें। सांस गहरी न लें।
क्या न करें: अपनी नाक के नीचे उंगली रखकर महसूस करें कि सांस में शीतलता है या गर्माहट। अगर सांस की शीतलता/गर्माहट महसूस नहीं कर पा रहे तो खुद पर दबाव न डालें। फिर ध्यान लगाएं। निरंतर थोड़े-छोड़े अभ्यास से सांस पर ध्यान केंद्रित करना सीख जाएंगे। इससे यह फायदा होता है कि ऐसा करते हुए हम अपने मन को धीरे-धीरे स्थिर कर पाते हैं। इसके नियमित अभ्यास से हम अपने विचारों और भावनाओं में संतुलन बना पाते हैं और भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं।
2. ध्यान देकर सुनना (कम-से-कम 10 मिनट)
इस प्रकिया के दौरान अपना ध्यान अपने आसपास से आ रहीं आवाजों पर ले जाएं जैसे कि पंखे की आवाज, ट्रैफिक की आवाज, किसी के बात करने की आवाज या फिर आसपास की कोई भी आवाज। देखें कि कैसी-कैसी आवाजें आ रही हैं, कौन-सी तेज हैं और कौन-सी धीमी? कौन-सी आवाज किस दिशा से आ रही है? कौन-सी आवाज लगातार आ रही है? कौन-सी रुक-रुक कर आ रही है आदि। इस अभ्यास को करते हुए किसी भी तरह की पूर्वधारणा न रखें, न ही किसी तरह की राय कायम करें। यह मत सोचें कि यह आवाज न होती तो अच्छा होता। हर तरफ की आवाज को स्वीकार करें। बस, आवाज पर ध्यान केंद्रित करें। अगर इस अभ्यास को करते हुए आपका ध्यान कहीं और चला जाता है तो उसके प्रति सजग हो जाएं और धीरे-धीरे अपना ध्यान वापस अपने आसपास मौजूद आवाजों पर ले जाएं।
क्या न करें: अगर मन बार-बार अलग-अलग आवाज की तरफ जा रहा है तो परेशान न हों, न ही खुद को किसी एक आवाज पर रोकने की कोशिश करें। यह न सोचें कि यह आवाज न होती तो अच्छा था। इससे यह फायदा होता है कि आप अपने आसपास मौजूद आवाजों पर ध्यान देने से हम वर्तमान के प्रति सजग होते हैं और निरंतर इसके अभ्यास से अपने दिमाग के ध्यान केंद्रित करने वाले हिस्से को ट्रेन्ड कर रहे होते हैं। यह किसी भी काम को बेहतर तरीके से करने के लिए हमें ट्रेंड करता है। बेहतर काम हमें आलोचनाओं और दुख से बचाता है। संतुष्टि और खुशी देता है।
3. ध्यान देकर देखना (कम-से-कम 10 मिनट)
इसका मतलब है कि हम जो कुछ भी देख रहे हैं, उसे हम उसके असल रूप में देख रहे हैं। अपने आसपास देखें कि क्या-क्या दिख रहा है? बारी-बारी से एक-एक चीज पर गौर करें। चीजों के आकार और रंग पर गौर करें। देखें कि उस चीज की सतह ठोस है या नरम, खुरदुरी है या चिकनी। आमतौर पर हम जब कुछ देखते हैं तो कुछ पूर्वधारणा बनाकर देखते हैं और सही-गलत, अच्छे और बुरे का फैसला करने लगते हैं। ऐसा न करें। अगर ध्यान करते हुए आप किसी चीज के अच्छे या बुरे के बारे में सोचने लगें तो उसके प्रति सजग होकर अपना ध्यान उस चीज के असली रूप पर ले जाएं।
इसका मतलब है कि हम जो कुछ भी देख रहे हैं, उसे हम उसके असल रूप में देख रहे हैं। अपने आसपास देखें कि क्या-क्या दिख रहा है? बारी-बारी से एक-एक चीज पर गौर करें। चीजों के आकार और रंग पर गौर करें। देखें कि उस चीज की सतह ठोस है या नरम, खुरदुरी है या चिकनी। आमतौर पर हम जब कुछ देखते हैं तो कुछ पूर्वधारणा बनाकर देखते हैं और सही-गलत, अच्छे और बुरे का फैसला करने लगते हैं। ऐसा न करें। अगर ध्यान करते हुए आप किसी चीज के अच्छे या बुरे के बारे में सोचने लगें तो उसके प्रति सजग होकर अपना ध्यान उस चीज के असली रूप पर ले जाएं।
क्या न करें: अपने मन को जबरन किसी चीज पर केंद्रित न करें, न ही उसके बारे में कोई राय बनाएं। सहजता से जो कुछ भी दिखे, देखते रहें। फायदा यह है कि
आमतौर पर हम किसी भी चीज के सभी पक्षों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, लेकिन ध्यान देकर देखने से हम उसके सभी पक्षों को देख पाते हैं। यह अनजाने में होने वाली गलतियों से हमें बचाता है। जब हम समस्या को समग्र रूप में देखते हैं तो समाधान भी बेहतर निकालते हैं। यह हमें खुशी देता है।
आमतौर पर हम किसी भी चीज के सभी पक्षों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, लेकिन ध्यान देकर देखने से हम उसके सभी पक्षों को देख पाते हैं। यह अनजाने में होने वाली गलतियों से हमें बचाता है। जब हम समस्या को समग्र रूप में देखते हैं तो समाधान भी बेहतर निकालते हैं। यह हमें खुशी देता है।
4. विचारों पर ध्यान देना (कम-से-कम 10 मिनट)
हमारा मन बेहद चंचल होता है। यह हमेशा बंदर जैसा दौड़ता रहता है। इसे एक जगह पर लगाना मुश्किल है लेकिन आपको यही करना है। अपने मन में आ रहे विचारों पर ध्यान लगाएं। इस अभ्यास के दौरान हम अनुभव करते हैं कि हमारा मन एक भी लम्हा किसी एक जगह टिक नहीं पाता और हमारे मन में न जानें कितने सारे विचार आते-जाते रहते हैं। मन में आने वाले विचारों को आने और जाने दें। उन्हें जबरन रोकें नहीं और न ही उन पर मन में सही/गलत, अच्छे/बुरे की टिप्पणी करें। अगर मन विचारों में उलझ जाता है तो अपना ध्यान वापस अपनी सांस पर लेकर जाएं।
क्या न करें: पने मन पर जबरन कोई विचार न थोपें, न ही उसके बारे में कोई राय बनाएं। फिर चाहे, वह पॉजिटिव राय ही क्यों न हो।
फायदा: इसके लगातार अभ्यास से मन में आने वाले विचार कुछ समय में अपने आप स्थिर हो जाते हैं। इससे आप नकारात्मक विचारों को दूर रखने में सफल रहते हैं और इससे आपको खुशी मिलती है।
5. शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना (लगभग 2 मिनट)
खड़े होकर अपनी बाजुओं को ऊपर की तरफ खीचें। अगर कुर्सी पर बैठे हैं तो बैठे-बैठे हाथों को ऊपर की ओर खीचें। फिर अपना ध्यान बाजुओं पर केंद्रित करें। उंगलियों से कंधों तक ध्यान लेकर जाएं। फिर जमीन पर बैठकर पैरों को सामने फैलाकर तानें। अगर कुर्सी पर बैठे हैं तो भी पैरों को सामने की ओर तानें। इसके बाद पैर के पंजों से लेकर टखनों और पूरे पैर पर ध्यान लगाएं।
क्या न करें: अभ्यास में जल्दबाजी न करें। बारी-बारी से हाथ और पैरों पर ध्यान लगाएं।
फायदा: हाथ-पैर में खिंचाव से शरीर फुर्ती-सा महसूस करता है। मन भी स्थिर होता है। तन की फुर्ती और स्थिर मन आपको सफल बनाता है और इससे जिंदगी में खुशियां आती हैं।
आखिर में... 2 मिनट के लिए शांत बैठ जाएं। आंख बंद या खुली, जैसे चाहें, रख सकते हैं। आंख खुली रखकर नीचे की तरफ भी देख सकते हैं। इस दौरान कुछ न सोचें। सांस भी बिल्कुल सामान्य रखना है। यह अवधि आपको सामान्य स्थिति में लौटने में मदद करेगी। वक्त नहीं है तो आप इनमें कोई भी कर सकते हैं।
(नोट: यहां दी गई ज्यादातर सामग्री दिल्ली के सरकारी स्कूलों में चल रहे हैपिनेस प्रोग्राम से ली गई है।)