Thursday, September 5, 2019

कमायचा



मन है। मन क्या ठिकाना। वह तो किसी वाद्य की किसी राग के लिये डूब सकता है। लेकिन संगीत के अद्भुत संसार में कुछ वाद्यों को सुनते हुए मुझे लगता है कि ये किसी विशेष प्रयोजन को ही बने हैं।

सघन उदासी को सारंगी। प्रेम को बांसुरी। विरह संदेशों को अलगोज़े। ऊर्जा के लिए पखावज और मृदंग। हुंकार भरने को दमामा, अनुशासन को बैगपाइपर, सुख-दुख को शहनाई और वायलिन, मस्ती को भपंग और गिटार, सूफ़ी होने को इकतारा, प्रवाह के लिए सन्तूर, दुनिया के भीतर कहीं खो जाने के लिए सितार, बंजारापन के लिए मोरचंग, मन की नदी के लिए जलतरंग।

इसी तरह अनवरत दुनिया भर के हज़ारों वाद्य जिनको सुन न पाए, जिनका नाम तक न सुना वे भी किसी प्रयोजन को ही बने होंगे। आपके दिल पर मरहम रखने आपकी ख़ुशी को सुर देने के लिए। हर वाद्य के पास हुनर है आपको रुला देने का, प्रेम से भर देने का, आलोक भर देने का यानी कुछ भी कर सकने का। हर जगह का अपना वाद्य है, कम या ज़्यादा।

कभी-कभी मुझे लगता है रेगिस्तानी होने के लिए ज़रूरी होता होगा, कमायचा।

- उस्ताद हक़ीम ख़ाँ साहब।

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