Sunday, October 14, 2012

वह प्रेम करेगी



वह प्रेम करेगी -
और चांद खिल उठेगा आकाश में
सुनाई देगा बादलों का कोरस,


वह प्रेम करेगी -
और मैं भेज दूंगा बादलों को
जलते हुए रेगिस्तानों में,


वह प्रेम करेगी -
और आकाश में दिखाई देंगे इंद्रधनुष के सातों रंग


वह प्रेम करेगी -
और थम जायेगा हिरोशिमा का तांडव
लातूर का भूकंप,
अफ्रीका के अरण्य में पहली बार उगेगा सूरज
सागर की छाती पर फिर कोई जहाज नहीं डूबेगा,
फिर विसुवियस के पहाड़ आग नहीं उगलेंगे,


वह प्रेम करेगी -
और मैं देखूंगा अनंत में डूबा आकाश
देखूंगा - मोर के पंखों का रंग,
प्यार करूंगा - जिन्हें कभी किसी ने प्यार नहीं किया,
देखूंगा - लहरों के उल्लास में
उफनती मछलियां
पंछी .. विषधर सांपों के अनोखे खेल
ऋतुमती पृथ्वी
झीलों का गहरा पानी
अज्ञात की ओर जाती अनंत चीटियों की कतार,
किसी प्राचीन आकाशगंगा में हम दोनों खेलेंगे
चांद और सूरज की गेंद से,


वह प्रेम करेगी -
और मैं उसे भेजूंगा
अंजुरी भर धूप
एक मुट्ठी आसमान
एक टुकड़ा चांद
थोड़े-से तारे,


वह प्रेम करेगी -
और किसी दिन
जाकर न लौट पाने की
असंभव दूरी से
जो आखिरी बार हाथ हिला कर
मन ही मन केवल कह सकूं विदा ..

जीवन के किसी मधुरतम क्षण में
तिस्ता किनारे सौंपना मुझे
तुम्हारी आंखों का एक बूंद पानी
और हृदय का थोड़ा-सा प्यार!


-उत्पल बनर्जी

 धन की चाह में रिश्ते खत्म हो रहे हैं. किसी के पास समय नहीं है कि वह दो पल ठहर कर इस शाश्वत अनुभूति को स्थान दे और महसूस करे इसकी गरमाहट व ऊष्मा. ऐसे समय में उत्पल बनर्जी की प्रेम कविताएं हमें एक नये धरातल पर ले जाती हैं. जहां दुनिया और प्रकृति अलग रंगों से भरी दिखायी देती हैं.

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