Wednesday, May 15, 2019

Relation between happiness and learning outcome


एक बार सोच के देखिये आप की कक्षा में कितने बच्चे हैँ जिनके चेहरे से मुस्कान बहुत दूर दूर रहती है बहुत अलग -अलग रहते हैँ वे, सहमे से, गुमसुम से, खोये-खोये. ऐसी स्थिति में उनका काम ना पूरा होने पे, याद ना होने पे, गलत व्यवहार करने पे उन्हें डांट देना, पीट देना, सजा देना बहुत आम सी बात होती है.और ऐसे बच्चे हमारी कक्षाओं में अधिक होते हैँ क्यूँ की वह जिस परिवेश से आते हैँ वहां परिस्थितियां बहुत कठिन हैं.सबसे महत्वपूर्ण चीज है की बच्चे खुश रहें, मुस्कुराते रहें मानसिक तनाव से दूर रहें.

प्रश्न : लेकिन किसकी जिम्मेदारी है उन्हें खुश रखने की ?
उत्तर : परिवार की ?

प्रश्न : परिवार में है कौन इस जिम्मेदारी को निभाने वाला ? 
पिता ? पिता दिन भर मजदूरी करता है, या तो बाहर कमाता है, नहीं तो दारु पीता है और घर आ कर मार पीट करता है, या फिर इस दुनिया में है ही नहीं.

माँ ? माँ दिन भर घर, गोरु और खेत के काम में व्यस्त है, साँझ होते ही घर के झगडे कभी खाने पे कभी किसी और बात पे, मार पीट खाने के बाद रो धो के दीपक बुझा के बच्चों को भी डाट के सुला देती है.

भाई ? भाई बड़े हैँ तो वो भी दो वक़्त की रोटी जोड़ने में बहुत छोटी उम्र से जुटे हैँ, किसी किसी को तो छोटी उम्र में बड़ों के साथ काम करने के कारण तम्बाकू, सिगरेट और नशे की लत भी है.

बहन ? बहन बड़ी है तो ससुराल की ही गई होगी, शादी नहीं हुई तो घर में उसकी शादी ही कलेश का कारण होगी, या फिर ससुराल से किसी कारणवश मायके बिठा दी गई होगी. 

दादा - दादी ? दादा -दादी हैं भी तो 
पने उम्र और रोगों के कारण स्वयं त्रस्त हैँ.

प्रश्न : अब बचा कौन जो इन बच्चों की खुशियों का इनकी प्यारी सी मुस्कान का ध्यान रखे ?
उत्तर : वही जो उनसे रोज़ मिलता/मिलती हो, जिसके संग यह बच्चे 5-6 घण्टे रोज़ बिताते हैँ, जिस पर बहुत विश्वास करके यह गरीब परिवार 
पने बच्चों को भेजते हैँ. जिसे गुरु, सर जी, मैम जी नाम से पुकारते हैं यह नन्हे बच्चे. 

प्रश्न : क्यूँ जरुरी है बच्चों का खुश होना मुस्कुराते रहना ?
उत्तर : ऐसे परिवेश से आने वाले यह बच्चे मानसिक रूप से इतने दुखी होते 
हैं की आप चाहें कितने भी तरीके अपना ले वो learning outcome नहीं अचीव कर पाएंगे जो हो जाने चाहिए. आपकी टीचिंग स्ट्रेटेजी, कंटेंट नॉलेज, ढेर सारे TLM सब बेकार लगेगा आपको जब इतनी मेहनत के बाद भी वो परिणाम नहीं मिलेंगे जिनकी आपने कल्पना की है. क्यूँ की जब आप पढ़ा रहे होते हैँ तब वो मन ही मन एक अलग लड़ाई लड़ रहे होते हैँ उन झंझावतों से निकलने की, उसे याद आ रहा होता है वो सब जो पिछली रात उसके घर हुआ था, कभी गुस्सा आ रहा होता है उसे, कभी दया अपनी माँ पर, कभी प्यार गोद वाले रोते चीखते छोटे भाई पर. कभी पेट से भूख की आवाज़ आ रही होती है. इन सब में उलझा हुआ वो पूरा घंटा कब निकल गया उसे पता ही नहीं चलता उसने तो सुना ही नहीं जो आपने कहा, उसे वो दिखा ही नहीं जो आपने लिखा. इसी बीच आप उसे खड़ा कर के प्रश्न पूछ लें और जवाब ना आने पर डांट -पिटाई लगा दें क्या होगा ऐसी स्थिति में उस बाल मन का. स्कूल से भागेगा वो, उपस्थिति घटेगी, धीरे धीरे पढ़ाई और स्कूल से मन छूट जायेगा. एक अच्छा शिक्षक बनना इतना आसान नहीं है खास कर जब आप 4-14 वर्ष के बच्चों के साथ ग्रामीण परिवेश में कार्य कर रहे हों जहाँ दो वक़्त की रोटी जोड़ना ही बहुत बड़ी जुगत है. 

सबसे पहली शर्त है की हम 
बाल मन में अपनी जगह बना पाएं, जब तक बच्चे भावनात्म रूप से आप से जुड़े नहीं होंगे आप चाह कर भी उनमे वो परिवर्तन नहीं ला सकते जो लाना चाहते हैँ. जब आपकी कक्षा में पढ़ने वाला हर बच्चा मुस्कुराने लगे,  आपसे खुल के चहचहाने लगे. आपको जब यह पता हो को उसके घर आज कौन आया है, उसकी माँ क्यूँ बीमार है, घर में आज क्या बना है, खेत पर कौन जाता है उसे राशन लेने किस दिन जाना है, कल उसे किसने पीटा है, सुबह उसने क्या खाया, कल किस नातेदार के यहाँ शादी में जाना है. समझ लीजिये आप ने बांध लिया उसे अपने साथ, उसका मन हल्का हो जायेगा सब दुख कहने से अपने. अब वो मुस्कुरायेगा, खेलेगा और पढ़ेगा भी, स्कूल रोज़ इसलिए भी आएगा की उसे कोई सुनता है यहाँ.

हमारे पास हल नहीं है उनके दुखों का किन्तु प्रेम है, सहानुभूति है, समय है जो हम उन्हें दे सकते है. जब प्रसन्न होंगे बच्चे तो स्वाभाविक है पढ़ने में मन भी लगेगा. अब लगाइये अपनी स्ट्रेटेजी, कंटेंट नॉलेज, TLM अब परिणाम अच्छे मिलेंगे.क्यूँ की वो अब इसलिए सुनेगा क्यूंकि आप उसे सुनते हैं. दोस्ती अच्छी रखनी है उसे आपसे तो काम भी करेगा, सीखेगा भी. जब तक कोई स्वयं सीखने को तैयार नहीं है उसे सिखाया नहीं जा सकता.(Thorndike's-law of readiness)और सीखने को बच्चों का मन तभी तैयार होगा जब वह मानसिक रूप से प्रसन्न होंगे




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